आर्य भारत देश के मूलनिवासी थे।

आर्य भारत देश के मूलनिवासी थे । आर्य विदेशी नहीं थे । डाँ आंबेडकर।

आदरणीय एवं सम्मानित मित्रों प्रणाम नमस्कार ।

Posted by: Lalsuprasad S. Rajbhar.

02/08/2018.

डाँ आंबेडकर खुद आर्यों को विदेशी नहीं मानते हैं । पहला प्रमाण आंबेडकर संम्पूर्ण बांम्मय खंड 7 पेज नंबर 321 पर लिखे हैं यह सोचना गलत है कि आर्य आक्रमणकारियों ने शुद्रो पर विजय प्राप्त की।पहली बात इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि आर्य भारत के बाहर से आये हैं। और उन्होंने यहां पर आक्रमण किया था यह विल्कुल गलत बात है।इस बात की पुष्टि प्रमाण है कि आर्य भारत के मूलनिवासी थे ।

फिर आगे पेज नंबर 322   पर लिखते हैं कि शुद्र को आर्य स्वीकार किया था। और आगे मैं प्रमाण दे रहा हूं ।आजकल एक दलित वर्ग विशेष (अम्बेडकरवादी ) अपने राजनेतिक स्वार्थ के लिए आर्यों के विदेशी होने की कल्पित मान्यता जो कि अंग्रेजी और विदेशी इसाई इतिहासकारों द्वारा दी गयी जिसका उद्देश्य भारत की अखंडता ओर एकता का नाश कर फुट डालो राज करो की नीति था उसी मान्यता को आंबेडकरवादी बढ़ावा दे रहे है | जबकि स्वयम अम्बेडकर जी ने “शुद्र कौन थे” नाम की अपनी पुस्तक में आर्यों के विदेशी होने का प्रबल खंडन किया है | आश्चर्य की बात है कि अम्बेद्कर्वादियो के आलावा तिलक महोदय जेसे अदलितवादी लेखक ने भी आर्यों को विदेशी वाली मान्यता को बढ़ावा दिया है | पहले इस मान्यता द्वारा द्रविड़ (दक्षिण भारतीय ) और उत्तर भारतीयों में फुट ढल वाई गयी जबकि जिसके अनुसार उत्तर भारतीयों को आर्य बताया और उन्हें विदेशी कह कर मुल्निवाशी दक्षिण भारतीयों का शत्रु बताया और हडप्पा और मोहनजोदड़ो को द्रविड सभ्यता बताया लेकिन फिर बाद में इन्होने द्रविड़ो को भी विदेशी बताया और भारत में मुल्निवाशी दलित और आदिवासियों को बताया .. जबकि न तो उन्होंने आर्यों को समझा और न ही दस्युओ को ,वास्तव में आर्य नाम की कोई नस्ल या जाति कभी थी ही नही आर्य शब्द एक विशेषण है जिसका अर्थ श्रेष्ट है | और कई लोगो ,महापुरुषों और भाषाओ में आर्य शब्द का प्रयोग किया गया है | आर्य शब्द की मीमासा से पहले मै कुछ अंश विदेशी इतिहास कारो और विद्वानों के उद्दृत करता हु जिससे उन लोगो के षड्यंत्र और कपट का पता आप लोगो को चलेगा … इस सन्धर्भ में मेकाले का प्रमाण देता हु मेकाले ने अपने पिता  को एक पत्र लिखा था जिसमे उसने उलेख किया है कि हिन्दुओ को अपने धर्म और धर्मग्रन्थो के खिलाफ भड़का कर कर अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार कर इसाईयत को बढ़ावा देना था ,देखे मेकाले का वह पत्र – इसी तरह life and letter of maxmullar में भी maxmullar का एक पत्र मिलता है जिसको उसने १८६६ में अपनी पत्नि को लिखा था पत्र निम्न प्रकार है – ” *I hope I shall finish the work and I feel convinced though I shall not live to see it yet this addition of mine and the translation of the vedas will here after tell to great extent on the fate of india and on the growth of millions of souls in that country. it is the root of their religion and to show them what the root is I feel sure, is the way of uprooting all that has sprung from it during the last three thousand years.” अर्थात मुझे आशा है कि मै यह कार्य सम्पूर्ण करूंगा और मुझे पूर्ण विश्वास है ,यद्यपि मै उसे देखने को जीवित न रहूँगा, तथापि मेरा यह संस्करण वेद का आध्न्त अनुवाद बहुत हद तक भारत के भाग्य पर और उस देश की लाखो आत्माओ के विकास पर प्रभाव डालेगा | वेद इनके धर्म का मूल है और मुझे विश्वास है कि इनको यह दिखना कि वह मूल क्या है -उस धर्म को नष्ट करने का एक मात्र उपाय है ,जो गत ३००० वर्षो से उससे (वेद ) उत्त्पन्न हुआ है | इसी तरह एक और दितीय पत्र मेक्समुलर ने १६ दि. १८६८ को भारत के तत्कालीन मंत्री ड्यूक ऑफ़ आर्गायल को लिखा था – ” the ancient religion of india is doomed , if christianity does not step in , whose fault will it be ? अर्थात भारत के प्राचीन धर्म का पतन हो गया है , यदि अब भी इसाई धर्म नही प्रचलित होता है तो इसमें किसका दोष है ? इन सबसे विदेशियों का उद्देश हम समझ सकते है | क्या आर्य इरान के निवासी थे –                                                                                                                इस षड्यंत्र के तहत इन्होने आर्य को इरान का निवाशी बताया है और आज भी सीबीएसई आदि पुस्तको में यही पढ़ाया जाता है कि आर्य इरान से भारत आये जबकि ईरानियो के साहित्य में इसका विपरीत बात लिखी है वहा आर्यों को भारत का बताया है और आर्य भारत से ईरान आये ऐसा लिखा है जिसे हम सप्रमाण उद्द्रत करते है – “चंद  हजार साल पेश अज  जमाना माजीरा  बुजुर्गी  अज  निजाद  आर्यों  अज  कोह  हाय  कस्मने  मास्त  कदम  निहादन्द  | ब  चू  आवो  माफ्त न्द  दरी  जा  मसकने  गुजीदन्द द  आरा  बनाम  खेश  ईरान  खिया द न्द |”( जुगराफिया  पंज  किताऊ  बनाम  तदरीस  दरसाल  पंजुम  इब्त दाई  सफा  ७५ ,कालम  १ सीन  अव्वल  व  चहारम  अज  तर्क  विजारत  मुआरिफ  व  शुरशुद 🙂 अर्थ – अर्थात कुछ हजार साल पहले आर्य लोग हिमालय पर्वत से उतर कर यहा आये और यहा का जलवायु अनुकूल पाकर ईरान में बस गये | इस प्रमाण से आर्यों के ईरान से आने की कपोल कल्पना का पता चलता है और उसका खंडन भी हो जाता है | क्या आर्य उतरी ध्रुव से आये थे ?                                                                                                              इस मान्यता को बल दिया बाल गंगाधर तिलक ने उन्होंने आर्यों को उतरी ध्रुव का बताया लेकिन जब उमेश चंद विद्या रत्न ने उनसे इस बारे में पूछा तो उनका उत्तर काफी हास्य पद था | देखिये तिलक जी ने क्या बोला –“आमि  मुलवेद  अध्ययन  करि  नाई  | आमि  साहब  अनुवाद  पाठ  करिया  छे  “( मनेवर  आदि  जन्म भूमि  पृष्ठ  १२४ ) अर्थात – हमने  मुलवेद नही पढ़ा , हमने तो साहब (विदेशियों ) का किया अनुवाद पढ़ा है | उतरी ध्रुव विषयक अपनी मान्यताओ के संधर्भ में तिलक महोदय ने लिखा है – “It is clear that soma juice was extracted and purified at neight in the arctic ”  अर्थ – ” उतरी ध्रुव में रात्रि के समय सोमरस निकला जाता था “| तिलक जी की इस मान्यता का उत्तर देते हुए नारायण भवानी पावगी ने अपने ग्रन्थ ” आर्यों वर्तालील आर्याची जन्मभूमिं ” में लिखा है – ” किन्तु  उतरी ध्रुव में सोम लता  होती ही नही ,वह तो हिमालय के एक भाग मुंजवान  पर्वत  पर  होती  है ”  इससे स्पष्ट है कि आर्यों के उत्तरी ध्रुव के होने की लेखक की अपनी कल्पना थी | वास्तव में जब तक आर्यों को एक जाति और नस्ल की दृष्टि से देखेंगे तो इसी तरह की समस्या आती रहेंगी आर्यों से पहले हमे आर्य शब्द के बारे में जानना चाहिय | आर्य शब्द की मीमासा –                                                                                                                               आर्य शब्द का प्रयोग अनेक अर्थो में वेदों और वैदिक ग्रंथो में किया गया है , जिसे मुख्यत विशेषण ,विशेष्य के लिए प्रयोग किया गया है | निरुक्त ६/२६ में यास्क ” आर्य: ईश्वरपुत्र:” लिख कर आर्य का अर्थ ईश्वर पुत्र किया है | ऋग्वेद ६/२२/१० में आर्य का प्रयोग बलवान के अर्थ में हुआ है | ऋग्वेद ६/६०/६ में वृत्र को आर्य कहा है अम्बेद्कर्वदियो का मत है कि वृत्र अनार्य था जबकि ऋग्वेद में ” हतो वृत्राण्यार्य ” कहा है यहाँ आर्य शब्द बलवान के रूप में प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ है बलवान वृत्र और वृत्र का अर्थ निघंटु में मेघ है अर्थात बलवान मेघ | इसी तरह वेदों के एक मन्त्र में उपदेश करते हुए कहा है ” कृण्वन्तो विश्वार्यम ” अर्थात सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ यहाँ आर्य शब्द श्रेष्ट के अर्थ में लिया गया है यदि आर्य कोई जाति या नस्ल विशेष होती तो सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ ये उपदेश नही होता | आर्य शब्द का विविध प्रयोग –                                                                                                                      ऋग्वेद १/१०३/३ ऋग. १/१३०/८ और १०/४९/३ में आर्य का प्रयोग श्रेष्ठ के अर्थ में हुआ है | ऋग्वेद ५/३४/६ ,१०/१३८/३ में ऐश्वर्यवान (इंद्र ) के रूप में प्रयुक्त हुआ है | ऋग्वेद ८/६३/५ में सोम के विशेषण में हुआ है | ऋग्वेद १०/४३/४ में ज्योति के विशेषण में हुआ है | ऋग्वेद १०/६५/११ में व्रत के विशेषण में हुआ है | ऋग्वेद ७/३३/७ में प्रजा के विशेषण में हुआ है | ऋग्वेद ३/३४/९ में वर्ण के विशेषण में हुआ है | ऋग्वेद १०/३८/३ में ” दासा आर्यों ” शब्द आया है यहाँ दास का अर्थ शत्रु ,सेवक ,भक्त आदि ले और आर्य का महान ,श्रेष्ट और बलवान तो दासा आर्य इस पद का अर्थ होगा बलवान शत्रु ,महान भक्त .श्रेष्ठ सेवक आदि | यहाँ दास को आर्य कहा है | अत: स्पष्ट है कि आर्य शब्द नस्ल या जातिवादी नही है बल्कि इसका अर्थ होता है महान ,श्रेष्ठ ,बलवान .ऐश्वर्यवान ,ईश्वरपुत्र , आदि जो की विश्व के किसी भी व्यक्ति ,जाति ,वंश के लिए प्रयुक्त हो सकता है | अन्य महापुरुषों द्वारा ,सभ्यताओ ,भाषा में आर्य शब्द –                                                                           ” ईरान के राजा आर्य मेहर की उपाधि लगाते थे क्यूंकि वे अपने आप को सूर्यवंशी क्षत्रिय समझते थे |” ” अनातौलिया की हित्ती भाषा में आर्य शब्द पाया जाता है “ “न्याय दर्शन १-१० पर वात्सायन भाष्य में आर्य शब्द का प्रयोग हुआ है | “ ” महाभारत में अनेक स्थलों के साथ साथ उद्योग पर्व में आर्य शब्द का उलेख है “ ” रामायण बालकाण्ड में आर्य शब्द आया है –     • श्री राम के उत्तम गुणों का वर्णन करते हुए वाल्मीकि रामायण में नारद मुनि ने कहा है – आर्य: सर्वसमश्चायमं, सोमवत् प्रियदर्शन: | (रामायण बालकाण्ड १/१६) अर्थात् श्री राम आर्य – धर्मात्मा, सदाचारी, सबको समान दृष्टि से देखने वाले और चंद्र की तरह प्रिय दर्शन वाले थे “ ” किष्किन्धा काण्ड १९/२७ में बालि की स्त्री पति के वध हो जाने पर उसे आर्य पुत्र कह कर रुधन करती है |” ” भविष्य पुराण में अह आर्य में आर्य शब्द का प्रयोग हुआ है इसी में मुहम्मद को मलेछ बताया है “ ” मृच्छकटिका नाटक में ” देवार्य नंदन ” शब्द में आर्य का प्रयोग हुआ है “ आर्य से आरमीनियो शब्द बना है जिसका अर्थ है शूरवीर “ • श्री दुर्गा सप्तशती में श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् के अंतर्गत देवी के १०८ नामों में से एक नाम आर्या आता है | (गीता प्रेस गोरखपुर पृष्ठ ९ • छन्द शास्त्र में एक छन्द का नाम आर्या भी प्रसिद्ध है |     भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने जब देखा कि वीर अर्जुन अपने क्षात्र धर्म के आदर्श से च्युत होकर मोह में फँस रहा है तो उसे सम्बोधन करते हुए उन्होंने कहा – कुतस्त्वा कश्मलमिदं, विषमे समुपस्थितम् | अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यम्, अकीर्ति करमर्जुन | (गीता २/३) अर्थात् हे अर्जुन, यह अनार्यो व दुर्जनों द्वारा सेवित, नरक में ले-जानेवाला, अपयश करने वाला पाप इस कठिन समय में तुझे कैसे प्राप्त हो गया ? यहा श्री कृष्ण ने अर्जुन को आर्य बनाने के लिए अनार्यत्व के त्याग को कहा है | सिखों के गुरुविलास में आर्य शब्द का उलेख – ” जो तुम सुख हमारे आर्य | दियो सीस धर्म के कार्य | ”आर्य भारत के मूलनिवासी थे ।

धन्यवाद ।

ऊँ नमः शिवाय।

जय सुहेलदेव राजभर ।

ललसूप्रसाद यस. राजभर।

02/08/2018.

Comments

Popular posts from this blog

हिन्दू कुल देवता एवं कुलदेवी प्रमुख बंसज कौन हैं। भारद्वाज गोत्र क्या है।

Bhar/Rajbhar Community

महाराजा बिजली राजभर।