भारद्वाज श्रृषि।
भारद्वाज श्रृषि ।
आदरणीय एवं सम्मानित मित्रों प्रणाम, नमस्कार।
Posted by: Lalsuprasad S. Rajbhar.
13/03/2019.
भारद्वाज वंश : भारद्वाज गोत्र आपको सभी जाति, वर्ण और समाज में मिल जाएगा। प्राचीन काल में भारद्वाज नाम से कई ऋषि हो गए हैं। लेकिन हम बात कर रहे हैं ऋग्वेद के छठे मंडल के दृष्टा जिन्होंने 765 मंत्र लिखे हैं। वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का अति उच्च स्थान है।
अंगिरावंशी भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। बृहस्पति ऋषि का अंगिरा के पुत्र होने के कारण ये वंश भी अंगिरा का वंश कहलाएगा। ऋषि भारद्वाज ने अनेक ग्रंथों की रचना की उनमें से यंत्र सर्वस्व और विमानशास्त्र की आज भी चर्चा होती है।
चरक ऋषि ने भारद्वाज को 'अपरिमित' आयु वाला कहा है। भारद्वाज ऋषि काशीराज दिवोदास के पुरोहित थे। वे दिवोदास के पुत्र प्रतर्दन के भी पुरोहित थे और फिर प्रतर्दन के पुत्र क्षत्र का भी उन्हीं ने यज्ञ संपन्न कराया था। वनवास के समय प्रभु श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का संधिकाल था। उक्त प्रमाणों से भारद्वाज ऋषि को अपरिमित वाला कहा गया है।
भारद्वाज के पिता देवगुरु बृहस्पति और माता ममता थीं। ऋषि भारद्वाज के प्रमुख पुत्रों के नाम हैं- ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र। उनकी 2 पुत्रियां थी रात्रि और कशिपा। इस प्रकार ऋषि भारद्वाज की 12 संतानें थीं। सभी के नाम से अलग-अलग वंश चले। बहुत से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं दलित समाज के लोग भारद्वाज कुल के हैं।
ग्यारहवां प्राचीन वंश...
गर्ग वंश : बहुत से लोगों का गोत्र गर्ग है और बहुत से लोगों का उपनाम गर्ग है। सभी का संबंध गर्ग ऋषि से है। वैदिक ऋषि गर्ग आंगिरस और भारद्वाज के वंशज 33 मंत्रकारों में श्रेष्ठ थे। गर्गवंशी लोग ब्राह्मणों और वैश्यों (बनिये) दोनों में मिल जाएंगे। एक गर्ग ऋषि महाभारत काल में भी हुए थे, जो यदुओं के आचार्य थे जिन्होंने 'गर्ग संहिता' लिखी।
ब्राह्मण पूर्वजों की परंपरा को देखें तो गर्ग से शुक्ल, गौतम से मिश्र, श्रीमुख शांडिल्य से तिवारी या त्रिपाठी वंश प्रकाश में आता है। गर्ग ऋषि के 13 लड़के बताए जाते हैं जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल वंशज कहा जाता है, जो 13 गांवों में विभक्त हो गए थे। यह कहना की गोत्र और ऋषि तो सिर्फ ब्राह्मणों के ही है गलत होगा। इन सभी ऋषियों से दलित समाज का भी जन्म हुआ है। इनकी एक शाखा दलितों में मिलती है तो दूसरी क्षत्रिय और वैश्यों में।
्बारहवां प्राचीन वंश।
गौतम वंश : हालांकि इस वंश में ब्राह्मण और क्षत्रियों के समूह सहित कई दलितों के समूह भी विकसित हुए। । खैर...विश्वामित्र और वशिष्ठ के समकालीन महर्षि गौतम न्याय दर्शन के प्रवर्तक भी थे। उन्हें अक्षपाद गौतम के नाम से भी जाना जाता है।
गौतम ऋषि की पत्नी का नाम अहिल्या था। इन्द्र द्वारा छलपूर्वक किए गए अहिल्या के शीलहरण की कथा सभी जानते होंगे। इसके बाद ऋषि ने उसे शिल्ला बन जाने का शाप दे दिया था। त्रेतायुग में अवतार लेकर जब श्रीराम ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुरी पहुंचे तो वहां उन्होंने गौतम ऋषि का आश्रम भी देखा। वहीं राम के चरण स्पर्श से अहिल्या शाप मुक्त होकर पुनः मानवी बन गईं।
गौतम ऋषि के 6 पुत्र बताए जाते हैं, जो बिहार के इन 6 गांवों के वासी थे- चंचाई, मधुबनी, चंपा, चंपारण, विडरा और भटियारी। इसके अलावा उप गौतम यानी गौतम के अनुकारक 6 गांव भी हैं, जो इस प्रकार हैं- कालीडीहा, बहुडीह, वालेडीहा, भभयां, पतनाड़े और कपीसा। इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाती है। गौतम ऋषियों के वंशज ने बिहार से बाहर निकलक भी अपने वंश का विस्तार किया था।
तेरहवां कुल...
पराशर वंश : शक्ति के पुत्र पराशर मुनि महर्षि वशिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के दृष्टा और ग्रंथकार हैं। ऋषि पराशर के पिता का देहांत इनके जन्म के पूर्व हो चुका था अतः इनका पालन-पोषण इनके पितामह वशिष्ठजी ने किया था। इनकी माता का नाम अदृश्यंति था, जो कि उथ्त्य मुनि की पुत्री थी।
पराशर के पुत्र ही कृष्ण द्वैपायन (वेदव्यास) थे जिन्होंने 'महाभारत' लिखी थी। सत्यवती जब कुंवारी थी, तब वेदव्यास ने उनके गर्भ से जन्म लिया था। बाद में सत्यवती ने हस्तिनापुर महाराजा शांतनु से विवाह किया था। शांतनु के पुत्र भीष्म थे, जो गंगा के गर्भ से जन्मे थे।
सत्यवती के शांतनु से 2 पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में मारा गया जबकि विचित्रवीर्य का विवाह भीष्म ने काशीराज की पुत्री अम्बिका और अम्बालिका से कर दिया, लेकिन विचित्रवीर्य को कोई संतान नहीं हो रही थी तब चिंतित सत्यवती ने अपने पराशर मुनि से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास को बुलाया और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी कि अम्बिका और अम्बालिका को कोई पुत्र मिले। अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु का जन्म हुआ जबकि एक दासी से विदुर का। इस तरह देखा जाए तो पराशर मुनि के वंश की एक शाखा यह भी थी।
धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी थी जिनके 100 पुत्र थे। दासी पुत्र विदुर की पत्नी यदुवंशी थी जिसका नाम सुलभा था। पांडु का वंश नहीं चला। पांडु की 2 पत्नियां कुंती और माद्री थीं।
पराशर ऋषि ने अनेक ग्रंथों की रचना की जिसमें से ज्योतिष के ऊपर लिखे गए उनके ग्रंथ बहुत ही महत्वपूर्ण रहे। ज्योतिष के होरा, गणित और संहिता 3 अंग हुए जिसमें होरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। होरा शास्त्र की रचना महर्षि पराशर के द्वारा हुई है। ऋषि पराशर के विद्वान शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि और रोम हर्षण थे।
चौदहवां प्राचीन वंश...
कात्यायन वंश : ऋषि कात्यायन की पुत्री ही कात्यायनी थीं। यह नवदुर्गा में से एक देवी कात्यायनी है। कात्यायन ऋषि को विश्वामित्रवंशीय कहा गया है।
स्कंदपुराण के नागर खंड में कात्यायन को याज्ञवल्क्य का पुत्र बतलाया गया है। उन्होंने 'श्रौतसूत्र', 'गृह्यसूत्र' आदि की रचना की थी। हम ऊपर विश्वामित्र और उनके वंश के बारे में लिख आए हैं, जो एक मैत्रेय गोत्र आता है वह भी विश्वामित्र से संबंधित है।
पंद्रहवां प्राचीन वंश...
शाण्डिल्य वंश : शाण्डिल्य मुनि कश्यप वंशी महर्षि देवल के पुत्र थे। वे स्मृति के परिचित रचयिताओं शंख और लिखित के पिता भी हैं। हालांकि शाण्डिल्य के 12 पुत्र बताए गए हैं जिनके नाम से कुलवंश परंपरा चली। महर्षि कश्यप के पुत्र असित, असित के पुत्र देवल मंत्र दृष्टा ऋषि हुए। इसी वंश में शांडिल्य उत्पन्न हुए। मत्स्य पुराण में इनका विस्तृत विवरण मिलता है।
महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम भी है। उन्हें त्रेतायुग में राजा दिलीप का राजपुरोहित बताया गया है, वहीं द्वापर में वे पशुओं के समूह के राजा नंद के पुजारी हैं। एक समय में वे राजा त्रिशंकु के पुजारी थे तो दूसरे समय में वे महाभारत के नायक भीष्म पितामह के साथ वार्तालाप करते हुए दिखाए गए हैं। कलयुग के प्रारंभ में वे जन्मेजय के पुत्र शतानीक के पुत्रेष्ठित यज्ञ को पूर्ण करते दिखाई देते हैं। इसके साथ ही वस्तुत: शाण्डिल्य एक ऐतिहासिक व्यक्ति है लेकिन कालांतार में उनके नाम से उपाधियां शुरू हुईं जैसे वशिष्ठ, विश्वामित्र और व्यास नाम से उपाधियां होती हैं।
सोलहवां प्राचीन वंश...
धौम्य वंश : देवल के भाई और पांडवों के पुरोहित धौम्य ऋषि, जो महाभारत के अनुसार व्यघ्रपद नामक ऋषि के पुत्र थे, शिव की तपस्या करके ये अजर, अमर और दिव्य ज्ञान संपन्न हो गए थे। धौम्य के आरुणि, उपमन्यु और वेद नामक 3 शिष्य थे।
आरूणि उद्दालक की कथा जगत प्रसिद्ध है। धौम्य का पूरा नाम आपोद धौम्य था। धौम्य कश्यप के वंश के थे। धौम्य वंश में लायसे, भरतवार, घरवारी, तिलमने, शुक्ल, व्रह्मपुरि, आत्मोती, मौरे, चंदपेरखी आदि अनेक नाम से गोत्र नाम हुए।
सत्रहवां प्राचीन वंश...
दक्ष वंश : पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे, जो कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की 2 पत्नियां थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई। दक्ष की ये सभी कन्याएं देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी आदि कहलाईं। उक्त कन्याओं और इनकी पुत्रियों को ही किसी न किसी रूप में पूजा जाता है। सभी की अलग-अलग कहानियां हैं।
प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियों में से 13 पुत्रियों का विवाह धर्म से किया। इसके अलावा धर्म से वीरणी की 10 कन्याओं का विवाह हुआ। महर्षि कश्यप से दक्ष ने अपनी 13 कन्याओं का विवाह किया। इसके अलावा बची 9 कन्याओं का विवाह- रति का कामदेव से, स्वरूपा का भूत से, स्वधा का अंगिरा प्रजापति से, अर्चि और दिशाना का कृशश्वा से, विनीता, कद्रू, पतंगी और यामिनी का तार्क्ष्य कश्यप से किया।
पुराणों की एक अन्य मान्यता के अनुसार दक्ष के प्रसूति नाम की पत्नी से 16 कन्याएं हुई थीं। इनमें से 13 उन्होंने प्रजापति ब्रह्मा को दी अत: वे ब्रह्मदेव के श्वसुर भी बन गए। उन्होंने स्वाहा पुत्री का विवाह अग्निदेव से किया। उनको सबसे छोटी पुत्री सती थी, जो त्र्यंबक रुद्रदेव को ब्याही गई। दक्ष की कथा विस्तार से भागवत आदि अनेक पुराणों में वर्णन की गई है।
दक्ष के पुत्रों की दास्तान : सर्वप्रथम उन्होंने अरिष्ठा से 10 सहस्र हर्यश्व नामक पुत्र उत्पन्न किए थे। ये सब समान स्वभाव के थे। पिता की आज्ञा से ये सृष्टि के निमित्त तप में प्रवृत्त हुए, परंतु देवर्षि नारद ने उपदेश देकर उन्हें विरक्त बना दिया। विरक्त होने के कारण उन्होंने कोई विवाह नहीं किया। वे सभी ब्रह्मचारी रहे।
दूसरी बार दक्ष ने एक सहस्र शबलाश्व (सरलाश्व) नामक पुत्र उत्पन्न किए। ये भी देवर्षि के उपदेश से यति हो गए। दक्ष को क्रोध आया और उन्होंने देवर्षि को शाप दे दिया- 'तुम दो घड़ी से अधिक कहीं स्थिर न रह सकोगे।'
इनके पुत्रों का वर्णन ऋग् 10-143 में तथा इन्द्र द्वारा इनकी रक्षा ऋग् 1-15-3 में आश्विनी कुमारों द्वारा इन्हें बृद्ध से तरुण किए जाने का कथन ऋग् 10-143-1 में है। राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे तथा प्रायश्चितस्वरूप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। उन्हीं से उनका वंश चला। -(विष्णु पुराण 4.1.14)
दक्ष गोत्र के प्रवर- गोत्रकार ऋषि के गोत्र में आगे या पीछे जो विशिष्ट सम्मानित या यशस्वी पुरुष होते हैं, वे प्रवरीजन कहे जाते हैं और उन्हीं से पूर्वजों को मान्यता यह बतलाती है कि इस गोत्र के गोत्रकार के अतिरिक्त और भी प्रवर्ग्य साधक महानुभाव हुए है। दक्ष गोत्र के 3 प्रवर हैं- 1. आत्रेये, 2. गाविष्ठर व 3. पूर्वातिथि।
धन्यवाद।
ऊँ नमः शिवाय।
जय सुहेलदेव राजभर ।
ललसूप्रसाद यस. राजभर।
13/03/2019.
आपने जो जानकारी अपने ब्लॉग के द्वारा दी है उसके लिए आपको साधुवाद।
ReplyDeleteअगर संभव हो तो भारद्वाज वंश की कुलदेवी पर कुछ प्रकाश डालें। 🙏
बहोत महत्वपूर्ण योगदान
ReplyDeleteभारद्वाज ऋषि की पत्नी का क्या क्या नाम है कुछ बताये
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