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विरांगना महारानी बल्लरी देवी राजभर जी की जीवन गाथा ।

महारानी वल्लरी देवी राजभर जी जीवन गाथा। आदरणीय एवं सम्मानित प्रणाम मित्रों नमस्कार । 08/03/2020 . आज महिला दिवस के अवसर पर भर / राजभर की विरगांना महारानी बल्लरी देवी राजभर जी को शत् शत् नमन। मित्रों हमारे भर/ राजभर समाज में अनेक महायोद्धा एवं विरांगनाएं पैदा हुए थी। जिन्होंने भर/ राजभर जाति का नाम रोशन किया था। उनमें से एक विरांगना महारानी बल्लरी देवी राजभर भी हैं। जिन्हें राजभर समाज के इतिहास के पन्नों पर अजर अमर कर दिया है।11 वीं सदी के नायक वीर सारोमणि सम्राट महाराजा सुहेलदेव की राजमहिषि का नाम वल्लरी देवी राजभर  थी। महारानी वल्लरी देवी के जीवन वृतान्त के विषय में इतिहासविदो ने अपनी लेखनी मौन रखी है। लेखक श्री यदूनाथप्रसाद श्रीवास्त्व एडवोकेट की पुस्तक “भाले सुल्तान ” ही एकमात्र ऐसा अभिलेख प्राप्त हुआ है जो उनके जीवन परिचय पर कम ,उनके अदम्य साहस और शौर्य पर ज्यादा प्रकाश डालती है। पुस्तक “भाले सुल्तान” का सारांश आपके सामने प्रस्तुत है। 11 वीं सदी में जब महमुद गजनवी एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया तो उस समय भारत के तमाम राजा आपसी वैमनस्य के कारण आपस में लड़ते भिड़ते कमजोर हो च

विरांगना महारानी कुन्तादेवी राजभर जी की जीवन गाधा।

विरागाँना महारानी कुन्ता देवी राजभर की पराक्रम की जीवन गाथा । आदरणीय एवम् सम्मानित मित्रों प्रणाम , नमस्कार ः🌸🌸🌸🌸🌸🌹🌹🌿🌷🌷🌷🌹🌹 Posted  by:   Lalsuprasad S. Rajbhar.  08/03/2020  आज महिला दिवस के अवसर पर हमारे भर / राजभर समाज की महिला विरांगना महारानी कुन्ती देवी जी शत् शत् नमन।विरागाँना महारानी कुन्ता देवी राजभर एक महान महायोद्धा एवं विरांगना महारानी थीं।जिन्होंने मुगल मुसलमानों के छक्के छुड़ा लियें थे।  हमारे राजभर समाज में  रानी लक्ष्मीबाई के जैसे महारानी कुन्ता देवी राजभर, महारानी बल्लरी देवी राजभर जैसी विरागाँना लड़ाकू, शूरवीर , आदर्श नारियों की वीरगाथा इतिहास में मिलता है । महारानी कुन्ता देवी राजभर की जीवनगाथा प्रस्तुत है. 🌹🌸🌱🌿🌿🌺🌺   भारतीय समाज में नारियों का स्थान सदैव सम्मान पूर्ण रहा है / भारतीय नारी ने रसोई घर एवं रनिवास से लेकर रणभूमि तक का दायित्व बखूबी निभाया है / यद्यपि भारतीय मनीषियों ने नारी को  पुरुष का अर्द्धांग  कहा है किन्तु सच तो यह है पुरुष की सर्वांग रचना ही नारी के गर्भ में होती है / पुरुष अधर है और नारी धरा / आज जब भी हम रामगढ़ की रानी अवंतिबाई लोध