शैव धर्म सबसे प्राचीन धर्म है।

शैव धर्म सबसे प्राचीन धर्म है।

आदरणीय एवम् सम्मानित मित्रों प्रणाम , नमस्कार ।

Posted by : Lalsuprasad S. Rajbhar

29/11/2020.

मित्रों शैव धर्म सबसे प्राचीन धर्म है । आज भी शैव धर्म हिन्दू धर्म का सँप्रदाय माना गया है । जो आज भी हिन्दू धर्म के लोग शैव धर्म को मानने है । जिसे आज हिन्दू धर्म कहा जाता है ।भगवान शिव  एवं उनके अवतारों को मानने वालोंको मानने वालोँ को शैव कहते हैं । शैव मे शाक्त, नाथ, दशनामी, नाग, आदि उपसँप्रदाय हैं । इसलिए भर/ राजभर को नागवंशी भी कहते हैं । क्योंकि उस समय भर/ राजभर जँगलो मे भगवान शिव का लिँग बनाकर अपने सिर के ऊपर रखकर पूजा अर्चना करते थे । आज भी. भर./ राजभर शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं । बौद्ध धर्म से भर/ राजभर कभी कोई नाता नहीं था ।हमारे राजभर का धर्म पहले भी हिन्दू था । आज भी हिन्दू है । इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करने से राजभर हिन्दू से बौद्ध अभी नहीं बनेंगे । आज राजभर जाति को ओबीसी मे रखा है । जिसमें यादव, गुप्ता, तेली, एवम् बनिया , जैसवाल, यानी वैश्य की कटेगरी मे रखा गया है । शुद्रों मे केवल दलितों को sc, st. मे रखा गया है ।हमेँ कोई भी इतिहास पढ़ाने की कोशिश मत किजिए । हम लोग अपना इतिहास अच्छी तरह से जानते हैं। महाराजा सुहेलदेव राजभर जी कट्टर हिन्दू थे । एवम् भगवान शिव के पुजारी थे । आज भी हमारा राजभर समाज उन्हीं का बँशज है ।

भगवान शिव से जुड़े संप्रदाय को शैव संप्रदाय कहते हैं। शैव संप्रदाय के भी कई विभाजन है। एक समय था जबकि भगवान ब्रह्मा की पूजा आदि का व्यापक प्रचलन था। फिर भगवान विष्णु की पूजा आदि का व्यापक प्रचलन हुआ और फिर भगवान शिव की पूजा आदि का व्यापक प्रचलन बढ़ा। दक्षिण भारत में भगवान शिव की पूजा का खास प्रचलन है। भारत के धार्मिक इतिहास के साथ अंग्रेज काल में छेड़खानी करने और उसका विकृतिकरण करने के कारण धर्म में सैंकड़ों तरह के विरोधाभास फैल गए हैं। 

हिंदुओं के मुख्‍यत: 5 संप्रदाय माने गए हैं-शैव, वैष्णव, शाक्त, वैदिक और स्मार्त। चर्वाक संप्रदाय तो लुप्त हो गया लेकिन बाकी सभी संप्रदाय प्रचलन में हैं। सबसे प्राचीन संप्रदाय शैव संप्रदाय को ही माना जाता है। आइए शैव संप्रदाय और धर्म के बारे में जानें कुछ खास 10 बातें।

 

शैव मत का मूल रूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में है। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। इनकी पत्नी का नाम है पार्वती जिन्हें दुर्गा भी कहा जाता है।

शिव का निवास कैलाश पर्वत पर माना गया है। इनके पुत्रों का नाम है कार्तिकेय और गणेश और पुत्री का नाम है वनमाला जिन्हें ओखा भी कहा जाता था।

शिव के अवतार :शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित हैं- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. षोडश, 5. भैरव, 6. छिन्नमस्तक गिरिजा, 7. धूम्रवान, 8. बगलामुखी, 9. मातंग और 10. कमल नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।

शिव के अन्य 11 अवतार : 1.कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 4. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. आपिर्बुध्य, 9. शम्भू, 10.चण्ड तथा 11. भव का उल्लेख मिलता है।

इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है। लेकिन सबसे चर्चित और खास तो हनुमान और भैरव को ही शिव का खास अवतार माना गया है।

शैव ग्रंथ :वेद का श्‍वेताश्वतरा उपनिषद (Svetashvatara Upanishad),शिव पुराण (Shiva Purana),आगम ग्रंथ (The Agamas)और तिरुमुराई (Tiru-murai- poems)।

* शैव तीर्थ :बारह ज्योतिर्लिंगों में खास काशी (kashi),बनारस (Banaras),केदारनाथ (Kedarnath),सोमनाथ (Somnath),रामेश्वरम (Rameshvaram),चिदम्बरम (Chidambaram),अमरनाथ (Amarnath)और कैलाश मानसरोवर (kailash mansarovar)।

शैव संस्कार :
1.शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। वे शिवलिंग की पूजा ही करते हैं।
2.इसके संन्यासी जटा रखते हैं।
3.इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते।
4.इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं।
5.इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं।
6.ये निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं।
7.शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं।
8.शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है।
9.शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं, जहां सिर्फ शिवलिंग होता है।
10.ये भभूति तिलक आड़ा लगाते हैं।

शैव साधु-संत :शैव साधुओं को नाथ, नागा, अघोरी, अवधूत, बाबा, ओघड़, योगी, सिद्ध आदि कहा जाता है। शैव संतों में नागा साधु और दसनामी संप्रदाय के साधुओं की ही प्रभुता है। संन्यासी संप्रदाय से जुड़े साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का जीवन है।

शैव संतों में गुरु मत्स्येंद्र नाथ, गुरु गोरखनाथ, सांईंनाथ बाबा, गजानन महाराज, कनीफनाथ, बाबा रामदेव, तेजाजी महाराज, चौरंगीनाथ, गोगादेव, शंकराचार्य, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि हजारों संत हैं, जो जगप्रसिद्ध हैं।

शैव संप्रदाय के उप संप्रदाय :शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के 4 संप्रदाय बतलाए गए हैं- शैव, पाशुपत, कालदमन और कापालिक।

कश्मीरी शैव संप्रदाय :कश्मीर को शैव संप्रदाय का गढ़ माना गया है। वसुगुप्त ने 9वीं शताब्दी के उतरार्ध में कश्मीरी शैव संप्रदाय का गठन किया। इससे पूर्व यहां बौद्ध और नाथ संप्रदाय के कई मठ थे।

वसुगुप्त के दो शिष्य थे कल्लट और सोमानंद। इन दोनों ने ही शैव दर्शन की नई नींव रखी। लेकिन अब इस संप्रदाय को मानने वाले कम ही मिलेंगे।

वीरशैव संप्रदाय :वीरशैव एक ऐसी परंपरा है जिसमें भक्त शिव परंपरा से बंधा हो। यह दक्षिण भारत में बहुत लोकप्रिय हुई है। यह वेदों पर आधारित धर्म है। यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा शैव मत है, पर इसके ज्यादादातर उपासक कर्नाटक में हैं।

भारत के दक्षिण राज्यों महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, केरल और तमिलनाडु के अलावा यह संप्रदाय अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कश्मीर, पंजाब, हरियाणा में बहुत ही फला और फैला। इस संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं।

तमिल में इस धर्म को शिवाद्वैत धर्म अथवा लिंगायत धर्म भी कहते हैं। उत्तर भारत में इस धर्म का औपचारिक नाम 'शैवा आगम' है। वीरशैव की सभ्यता को द्रविड़ सभ्यता भी कहते हैं।

कापालिक शैव :कापालिक संप्रदाय को महाव्रत-संप्रदाय भी माना जाता है। इसे तांत्रिकों का संप्रदाय माना गया है। नर कपाल धारण करने के कारण ये लोग कापालिक कहलाए। कुछ विद्वान इसे नहीं मानते हैं। उनके अनुसार कपाल में ध्यान लगाने के चलते उन्हें कापालिक कहा गया। पुराणों अनुसार इस मत को धनद या कुबेर ने शुरू किया था। सरबरतंत्र में 12 कापालिक गुरुओं और उनके 12 शिष्यों के नाम सहित वर्णन मिलते हैं। गुरुओं के नाम हैं- आदिनाथ, अनादि, काल, अमिताभ, कराल, विकराल आदि। शिष्यों के नाम हैं- नागार्जुन, जड़भरत, हरिश्चन्द्र, चर्पट आदि। ये सब शिष्य तंत्र के प्रवर्तक रहे हैं।

लकुलीश संप्रदाय :मध्यकाल के पूर्वार्द्ध में (6-10 शती) लकुलीश के पाशुपत मत और कापालिक संप्रदायों के होने का उल्लेख मिलता है। गुजरात में लकुलीश संप्रदाय का बहुत पहले ही प्रादुर्भाव हो चुका था। कालांतर में यह मत दक्षिण और मध्यभारत में फैला।

लकुलीश संप्रदाय या ‘नकुलीश संप्रदाय’ के प्रवर्तक ‘लकुलीश’ माने जाते हैं। लकुलीश को स्वयं भगवान शिव का अवतार माना गया है। लकुलीश सिद्धांत पाशुपतों का ही एक विशिष्ट मत है। यह संप्रदाय छठी से नौवीं शताब्दी के बीच मैसूर और राजस्थान में भी फैल चुका था।

आंध्र के कालमुख शैव :आज के प्रसिद्ध तिरुपति मंदिर में जो मूर्ति है (बालाजी या वेंकटेश्वर) व मूर्ति वीरभद्र स्वामी की है। कहा जाता है कि कृष्णदेवराय के काल में रामानुज आचार्य ने इस मंदिर का वैष्णवीकरण किया है और वीरभद्र की मूर्ति को बालाजी का नाम दिया गया, लेकिन यह कालमुख शिव संप्रदाय का स्थान था।

वारंगल 12वीं सदी में उत्कर्ष पर रहे आंध्रप्रदेश के काकतीयों की प्राचीन राजधानी था। वारंगल में 1162 में निर्मित 1,000 स्तंभों वाला शिव मंदिर शहर के भीतर ही स्थित है। कालमुख या आरध्य शैव के कवियों ने तेलुगु भाषाओं की अभूतपूर्व उन्नति की। शैव मत के अंतर्गत कालमुख संप्रदाय का यह उत्कर्ष काल था। वारंगल नरेश प्रतापरुद्र स्वयं भी तेलुगु का अच्छा कवि था।

तमिल शैव :वैसे समूचे तमिल क्षेत्र में शैव पंथियों के ही मठ और मंदिर थे। शिवपुत्र कार्तिकेय ने सबस पहले यहां शैव मत का प्रचार-प्रसार किया था। छठी से नौवीं शताब्दी के मध्य तमिल देश में उल्लेखनीय शैव भक्तों का जन्म हुआ, जो कवि भी थे।संत तिरुमूलर शिवभक्त तथा प्रसिद्ध तमिल ग्रंथ तिरुमंत्रम् के रचयिता थे।
धन्यवाद 

ऊँ नमः शिवाय ।

श्री लालसूप्रसाद  यस. राजभर ।

29/11/2020.🌹🌹🌿🌿🌷🌷🙏🙏

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