ओबीसी आरक्षण कोटे का वर्गीकरण कर रही है उत्तर प्रदेश की योगी सरकार।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सर्वाधिक पिछड़ो को ओबीसी आरक्षण कोटे का वर्गीकरण करके 17 जातियों को आरक्षण देगी।

आदरणीय एवं सम्मानित मित्रों प्रणाम, नमस्कार।

Posted by Lalsuprasad S.Rajbhar.

18/09/2018.


मित्रों राजभर समाज आरक्षण के लिए में कुछ भटकाव जैसी स्थिति पैदा हो गई है ।कोई dnt का समर्थन करता है । जिसमें आरक्षण नाम की कोई चीज नहीं है।केवल शिक्षा मे आरक्षण है ।नौकरी में किसी भी प्रकार का आरक्षण नहीं है। dnt  means denotified tribes (dNTs) also know vimukta jati.1. are the tribes that were listed originally under the Criminal tribes act 1971.
2.  As Criminal tribes and "addicted to systematic commission of Non - Bailable offence.  Once a tribes became notified as "Criminal" , all its  members were required to register with the local magistrate, failing which they would be charged with a" crime" under the indian panel code . The Criminal tribes act of 1952 repeated the notification, de- notified the Criminal tribes communitues .This act  however,was repeated by a series of habitual offenders acts. That asked police to investigate a suspect Criminal tendencies and.हमारे राजभर समाज को वापस dnt me मत खसिटिए । हमें dnt का आरक्षण नहीं चाहिये । st मे उत्तर प्रदेश में केवल 1.5% आरक्षण प्राप्त है । पिछली मायावती सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए 15+ 6 = 21% का आरक्षण उत्तर प्रदेश में दी है ।हमारे राजभर समाज को ओबीसी आरक्षण कोटे का वर्गीकरण सही लग रहा है । अतः माननीय अशोक राजभर जी से नम्रतापूर्वक निवेदन है ओबीसी आरक्षण कोटे का वर्गीकरण सही है ।राजभर जाति लड़ाकू जाति है । भीखमंगी जाति राजभर नहीं है । इसलिए हमें आरक्षण के लिए भीखमंगी जाति मे मत डालिए । हम लोग मान सम्मान से जी लेंगे । परन्तु dbt का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए ।अब अशोक कुमार राजभर जी आप खुद समझदार हैं । योगी सरकार एवम् केन्द्र की मोदी सरकार 17 जातियों का आरक्षण सर्वाधिक पिछड़े वर्ग में दे रही है । वह ठीक है। परंतु राजभर समाज को वापस विमुक्ति मे डालना उचित नहीं है । क्योंकि राजभर जाति अब क्रिमिनल नहीं है।ओबीसी की देन पुर्व प्रधानमंत्री मा . विश्व नाथ प्रताप सिंह जी की देन है । जिन्होंने राजभर समाज को ओबीसी आरक्षण कोटे में रखे हैं। ओबीसी आरक्षण के लिए विश्वनाथ प्रताप सिंह जी की प्रधानमंत्री की कुर्सी भी चली गई थी ।फिर भी विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ने ओबीसी आरक्षण लागू करके दम लिए थे।

उत्तर प्रदेश में अगले कुछ महीने दलित−पिछड़ा सियासत के लिये महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। जातिवाद की जिस 'चिंगारी' को सपा ने हवा दी थी, उसे बीजेपी 'शोला' बना देना चाहती है ताकि इस 'आग' में विरोधियों को झुलसाया जा सके। आम चुनाव से पूर्व अति पिछड़ों को आरक्षण देने की मंशा के तहत योगी सरकार ने पहला कदम उठाते हुए चार सदस्यीय समिति का गठन कर दिया है। हालांकि यूपी सरकार की ओर से इस समिति के गठन का कारण हाईकोर्ट के निर्देशों का अनुपालन बताया गया है, लेकिन यह तय माना जा रहा है कि उक्त समिति की रिपोर्ट ही आगे चलकर अति पिछड़ों को आरक्षण का मजबूत आधार बन सकती है। गौरतलब हो कि समिति के विचारार्थ जो विषय निर्धारित किए गए हैं, उनमें पिछड़ों को मिले आरक्षण का विश्लेषण भी है।

शासन की ओर से गठित समिति के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश राघवेंद्र कुमार बनाए गए हैं। अन्य सदस्यों में रिटार्यड आइएएस जेपी विश्वकर्मा, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भूपेंद्र सिंह और अधिवक्ता अशोक राजभर समित के सदस्यों में शामिल हैं। समिति पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए प्रदेश सरकार की सभी योजनाओं, व्यवस्थाओं और सुविधाओं का विश्लेषण करने के साथ ही पिछड़ा वर्ग का सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आकलन के साथ इस बात की भी संस्तुति करेगी कि पिछड़ा वर्ग की आरक्षण व्यवस्था को और प्रभावी बनाने के लिए क्या किया जा सकता है।

बात सियासत की करें तो योगी सरकार अति पिछड़ी जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ देकर विरोधियों के सामने बड़ी लकीर खींचना चाहती है। अति पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में लुभाने के लिए सरकार इसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटा के भीतर अलग कोटे में आरक्षण देने की तैयारी कर रही है। वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 27 फीसद आरक्षण की व्यवस्था है लेकिन इसका सर्वाधिक लाभ मात्र कुछ जातियों को ही मिलता है। उदाहरण के तौर पर पिछड़ा आरक्षण में मात्र 09 प्रतिशत आबादी होने के बाद भी यादवों की नौकरियों में हिस्सेदारी 132 प्रतिशत है। इसी तरह ओबीसी में कुर्मी जाति के लोगों की आबादी सिर्फ पांच फीसद है पर नौकरियों में इनकी हिस्सेदारी 242 फीसद है। पूर्व में कुर्मी वोटर अपना दल के साथ खड़े नजर आते हैं। इसके उलट 63 ऐसी जातियां हैं जो ओबीसी आबादी में करीब 14 फीसदी हिस्सेदारी रखती हैं, पर इनको 77 फीसदी नौकरियां ही मिली हैं। सरकार चाहती है कि ओबीसी में आरक्षण अलग अलग जातियों को उनकी आबादी के अनुपात और सामाजिक न्याय के मुताबिक मिले। इन्हीं 63 जातियों पर बीजेपी की नजर है, जो सपा और बसपा की जातिवादी राजनीति में कहीं खड़े नहीं नजर आते हैं। बीजेपी चाहती है कि आबादी के अनुपात में आरक्षण का फायदा नहीं पाने वालों को आरक्षण का लाभ दिलाया जाए।

बात यहीं तक सीमित नहीं है, उक्त के अलावा भी पहले गोरखपुर और फूलपुर और फिर कैराना व नूरपुर में मिली पराजय के बाद भाजपा का ध्यान पूरी तरह संगठन और उसमें भी पिछड़ा वर्ग मोर्चा को मजबूत करने पर है। कैराना, नूरपुर का चुनाव परिणाम आते ही भाजपा ने पिछड़ा मोर्चा के पदाधिकारियों की घोषणा कर दी थी। यह चयन इस बात का संकेत है कि बीजेपी अब नए सिरे से अति पिछड़ों को लामबंद करेगी। बताते चलें कि उप−चुनावों में मिली हार के बाद ही भाजपा पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष की घोषणा के करीब डेढ़ वर्ष बाद उनकी कमेटी घोषित हुई है। दरअसल, 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अति पिछड़ा कार्ड खेला और सफलता भी हासिल की थी। 2014 में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछड़ों के सबसे बड़े नेतृत्व के रूप में उत्तर प्रदेश में प्रभावी साबित हुए थे तो इस प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए ही 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश भजपा की कमान सौंपी थी। विधानसभा चुनाव में एक तरफ तो मोदी मैजिक चला तो दूसरी तरफ अति पिछड़ी जातियों के बीच से केशव मौर्य को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का निर्णय भी सही साबित हुआ। गठबंधन समेत 325 सीटें भाजपा की झोली में आ गईं पर, पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद भाजपा अति पिछड़ों को साधने में कारगर भूमिका नहीं निभा सकी। इसका खमियाजा उप−चुनावों में बीजेपी को हार के रूप में भुगतना पड़ा।

भाजपा के बहुप्रतीक्षित पिछड़ा मोर्चा के पदाधिकारियों में यादव और कुर्मी जैसी मजबूत पिछड़ी जातियों के नेता शामिल किये गये हैं तो राजभर, कुशवाहा, नाई, मौर्य, सैनी, भुर्जी, मावी, लोधी, कश्यप, बारी, निषाद, चौरसिया, विश्वकर्मा, तेली और पाल बिरादरी के नेताओं को भी भरपूर अवसर दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष और सीतापुर के सांसद राजेश वर्मा की टीम में आठ उपाध्यक्ष सकलदीप राजभर, रामरतन कुशवाह, हीरा ठाकुर, राम कैलाश यादव, रमाशंकर पटेल, गुरू प्रसाद मौर्य, परमेश्वर सैनी और जीवन सिंह अर्कवंशी, तीन महामंत्री चिरंजीव चौरसिया, पूरन लाल लोधी और विनोद यादव तथा आठ मंत्री नानकदीन भुर्जी, मोहन प्रसाद बारी, योगेंद्र मावी, राकेश निषाद, ममता लोधी, बाबा बाल दास पाल, बुद्धलाल विश्वकर्मा बनाये गये हैं। पुनीत गुप्ता को कोषाध्यक्ष और संजय सिंह को मीडिया प्रभारी बनाया गया है।

इसी प्रकार से बीजेपी दलितों में भी अति दलित छांट रही है। दलितों की 21 प्रतिशत आबादी में 55 प्रतिशत जाटव हैं। यह बसपा का वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा बचे हुए 45 फीसदी अति दलित की श्रेणी में आते हैं। इस 45 प्रतिशत को लुभाने के लिए ही भाजपा ने अति दलितों के आरक्षण की भी बात कही है। उधर, दलित चिंतक एसआर दारापुरी कहते हैं कि 1976 में डॉ. छेदीलाल साथी आयोग बना था। उसने भी अति पिछड़ों के आरक्षण की वकालत की थी। अतिपिछड़ों को आरक्षण तो संवैधानिक दृष्टि से संभव है, लेकिन अति दलितों के आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुका है। पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी अति दलित आरक्षण की कोशिश हुई लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि दलितों में जातियों का वर्गीकरण नहीं हो सकता। अति पिछड़ों में आरक्षण संभव है।

उत्तर प्रदेश में इससे पहले 2001 में भी मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने दलितों और पिछड़ों में हर जाति को उसकी संख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए हुकुम सिंह की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थी। कमिटी की रिपोर्ट को विधान सभा में पारित भी कर दिया गया था, लेकिन उनकी ही सरकार में मंत्री अशोक यादव इसके खिलाफ कोर्ट चले गए थे। कोर्ट ने इस कमिटी की रिपोर्ट पर रोक लगा दी थी। DNT मे आरक्षण नहीं चाहिए । क्योंकि राजभर समाज आदिवासी भीखमंगी, नट, एवम् हजारों नीच जाति जैसी नहीं है ।
निजी मत।

धन्यवाद।

लालसूप्रसाद यस. राजभर।

18/09/2018.

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