Posts

Showing posts from March, 2019

महिषासुर एक राक्षस था। जिसे मां भगवती ने संहार किया था।

महिषासुर एक राक्षस था। जिसे मां भगवती ने वध किया था। आदरणीय एवं सम्मानित मित्रों प्रणाम , नमस्कार। 01/04/2019. महिषासुर असुर  का जन्म मित्रों जब जब हिन्दू राजभर का कोई फेस्टिवल आता है तब तब कुछ राजभर समाज में कुंठित मानसिकता वाले ( बुद्धिस्ट, नास्तिक )  जैसे लोग महिषासुर राक्षस को भी अपना बताने लगते हैं। इस पृथ्वी सर्वप्रथम देवता एवं उसके बाद दानवों का जन्म हुआ। मनुष्य सबसे बाद मे आये। परन्तु कुछ विचलित मानसिकता, एवं अज्ञानी जैसे लोग महिषासुर राक्षस को भी अपना बनाने पर तुले हुए हैं। क्योंकि ऐसे लोगों को राक्षसों का सहारा लेकर बुद्धिस्ट धर्म को आगे बढ़ाना है। जबकि महिषासुर जैसे राक्षसों के वध के मां चण्डिका को इस धरती पर आना पड़ा था। जिसनें अत्याचारी महिषासुर का अंत किया। मित्रों हमारे समाज में एकता लाने के लिए हमारा धर्म भी बहुत महत्वपूर्ण है। धर्म मे खलल पैदा करने वाले लोगों को सामाजिक  लगाम लगाना जरूरी है। नहीं तो ऐसे लोग अपनी कुंठित मानसिकता पर रोक नहीं लगायेंगे। एवं अपने फायदे के लिए इतिहास को भी तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। हमारे राजभर समाज की कुलदेवी मां दुर्गा  को भी बुद्धिस्ट

"भारत माता " भारत को क्यों मां की उपाधि दी गई।

“भारत माता”… भारत को क्यों “माँ” की उपाधि दी । आदरणीय एवं सम्मानित मित्रों प्रणाम, नमस्कार। Posted by:  Lalsuprasad S. Rajbhar. 25/03/2019. ‘मित्रों आदि काल से ही पृथ्वी को मातृभूमि की संज्ञा दी गई है... भारतीय अनुभूति में पृथ्वी आदरणीय बताई गई है… इसीलिए पृथ्वी को माता कहा गया…  महाभारत के यक्ष प्रश्नों में इस अनुभूति का खुलासा होता है… यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था कि आकाश से भी ऊंचा क्या है और पृथ्वी से भी भारी क्या है? युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया कि पिता आकाश से ऊंचा है और माता पृथ्वी से भी भारी है… हम उनके अंश हैं… यही नहींऊ इसका साक्ष्य वेदों (अथर्ववेद और यजुर्वेद) में भी मिलता हैं… यही नहीं सिंधु घाटी सभ्यता जो 3300-1700 ई.पू. की मानी जाती है… विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी… सिंधु सभ्यता के लोग भी धरती को उर्वरता की देवी मानते थे और पूजा करते थे… वेदों का उद्घोष – अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘माता भूमि’:, पुत्रो अहं पृथिव्या:। अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं…  यजुर्वेद में भी कहा गया है- नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्या:। अ

सुर्य देवता की महिमा एवं उपासना।

भगवान सूर्य की महिमा  एवं भगवान सुर्य की उपासना। सुर्य , चन्द्र, और पृथ्वी  इस संसार के देवी देवता हैं। जो हमें प्रत्यक्ष उनके सर्वोच्च दिव्य स्वरूप मे दिखाई देते हैं।वेदों में सुर्य देवता को जगत की आत्मा कहा गया है। सम्स्त चराचर जगत की आत्मा सुर्य ही है। सुर्य से इस पृथ्वी पर जीवन है।वैदिक काल से ही भारत में सुर्य की की उपासना का प्रचलन रहा है। वेदों में ऋचाओं मे अनेक स्थानों पर सुर्य देव की स्तुति की गई है।पुराणों में भगवान सुर्य की उत्पत्ति ,प्रभाव स्तुति, मन्त्र इत्यादि विस्तार से मिलते हैं।ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों मे सुर्य को राजा पद मिला है।हिन्दू धर्म बहुत देवी देवता भी बहुत से है | इन्ही में से एक देवता है सूर्य देव जो साक्षात दर्शन देते है और व्यक्ति , पेड़ पौधो और जानवरो को जीवन प्रदान करते है | अन्धकार को दूर करने वाले और रोशनी देने वाले सूर्य देवता के बिना किसी का भी जीवन अपूर्ण है | वेदो और पुराणों में सूर्य देव की महिमा को विस्तार से बताया गया है | इनका विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर कोणार्क में है | कैसे हुआ भगवान सूर्य का जन्म ? एक बार देवता और दानवो के युद्ध में देव

भगवान सुर्य की महिमा।

सूर्य देवता की महिमा। आदरणीय एवं सम्मानित ऐ मित्रों प्रणाम , नमस्कार। Posted by: Lalsuprasad S. Rajbhar. 22/03/2019. सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है।[2] समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे।[3] सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही