हिन्दू राष्ट्र रक्षक वीर शिरोमणि महाराजा सातनदेव राजभर।

हिन्दू राष्ट्र रक्षक वीर शिरोमणि महाराजा सातन देव राजभर

आदरणीय एवं सम्मानित  मित्रों प्रणाम,  नमस्कार।

Posted by: Lalsuprasad  S. Rajbhar.

20/11/2018 . Tuesday.

मित्रों  भर/ राजभर समाज में एक से बढ़कर एक योद्धा इस धरती पर पैदा हुए। जिसमेँ से एक योद्धा थे महाराजा सातन राजभर।हिन्दू राष्ट्र रक्षक चक्रवर्ती महाराजा सातन देव राजभर
जनपद उन्नाव के पुखवरा तहसील और हड़हा क्षेत्र के कई भागों में राजभरों का राज्य था। यद्यपि जिले के केन्द्रीय भाग में बिसेन राजपूत काबिज थे। किन्तु उत्तर पश्चिम क्षेत्र में राजभरों की बाहुबली सत्ता स्थापित थी, और बांगर मऊ उनकी सत्ता का प्रमुख केंद्र था। इसी जिले में मशहूर राजभर शासक महाराजा सातन देव राजभर का किला था जिसके भग्नावशेष आज भी सातन कोट के नाम से विख्यात है। उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा नामक स्थान पर भी राजभर शासक था। इस शासक को बाद में बैस राजपूतों ने बेदखल किया था। टांडा :- वर्तमान अम्बेडकर नगर जिले की टांडा तहसील में बिड़हर नाम का एक परगना है। इस स्थान पर ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी तक राजभरों का राज्य था। मुस्लिम आक्रमण से यह राजा बेदखल हो गये थे। वे राजभर वहां से उड़ीसा राज्य में चले गए थे। उड़ीसा में उन्हें भुइञा कहा जाता है। भर और भुइञा जाति के लोगों के बारे में सरहेनरी इलियट अंग्रेज ने समानता का अध्ययन किया है। बिड़हर परगने में भर शासकों के बारह किलों के निशान विधमान है। 1:- कोरावां 2:- चांदीपुर 3:- समौर 4:- रूघाई 5:- सैदपुर लखाडीर 7:-सोनहाम 8:- नथमालपुर बेढुरिया 9:-पोखर बेहटा 10:- सामडीह 11:- करावां 12:- ओछबान। महाराजा सातन की सत्ता का केन्द्र बागर मऊ था जो उन्नाव जिले में पड़ता है, सातन कोट में महाराजा सातन देव के नाम से किला प्रसिद्ध था।जिसके भग्नावशेष मौजूद हैं। महाराजा सातन देव राजभर तथा महाराजा बिजली राजभर दोनों मित्र थे। महाराजा बिजली राजभर से आल्हा ऊदल द्वारा जयचंद के भेजने पर होने वाले युद्ध से पहले जयचंद ने सोचा कि मुझे राज्य विस्तार करना है और राज्य विस्तार के मार्ग में राजा सातन देव और राजा बिजली राजभर रोड़े हैं। अतः जयचंद ने सबसे पहले महाराजा सातन देव के किले सातन कोट पर आक्रमण कर दिया था,घमासान युद्ध हुआ और जयचंद की सेनाओं को भागना पड़ा। इस अपमान जनक पराजय से जयचंद का मनोबल टूट गया था इसके बाद जयचंद ने कुटिलता पूर्वक एक चाल चली और महोबा के शूरवीर आल्हा ऊदल को भारी खजाना एवं राज्य देने के प्रलोभन देकर बिजनौरगढ़ एवं महाराजा बिजली राजभर के किले पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। उसी समय काकोरगढ़ के राजा के यहाँ महाराजा बिजली राजभर परामर्श करने गये थे। महाराजा सातन देव राजभर भी वही मौजूद थे। उसी समय आल्हा ऊदल द्वारा भेजे गये दूत द्वारा अधीनता स्वीकार करने और राज्य का आय देने की बात जैसे ही सुनी राजा बिजली भर और महाराजा सातन देव राजभर ने युद्ध करने की ठानी। गांजर के मैदान में आल्हा ऊदल अपनी सेनाएं युद्ध के लिए उतार दी राजा सातन तथा राजा बिजली की सेनायें भी गांजर के मैदान में डट गयीं। आमने सामने का युद्ध तीन महीना तेरह दिन तक होता रहा। बिजली वीर शहीद हुए। यह खबर मिलते ही देवगढ़ के राजभर राजा देवमाती अपनी सेना लेकर भूखे शेर की भांति टूट पड़े। उनकी दहाड़ और गर्जन सुनकर आल्हा और ऊदल कन्नौज की ओर भाग खड़े हुए। महाराजा सातन देव ने आल्हा ऊदल के साले जोगा और भोगा को खदेड़ कर मौत के घाट उतार दिया और अपनी सच्ची मित्रता और बहादुरी का परिचय दिया था.महाराजा सातन देव राजभर के पास 52 किले थे। महाराजा सातन देव ने बहराइच में जाकर मुस्लिम आक्रमण को दबाया। और पुनः जौनपुर गये वहां विप्लव को दबाने के लिए वहीं युद्ध करते समय किसी ने पीछे से वार कर दिया वे धराशायी होकर वीरगति को सन्1207 ई.  प्राप्त हुए।

धन्यवाद।

ऊँ नमः शिवाय।

जय सातनदेव राजभर।

ललसूप्रसाद यस. राजभर।

20/11/2018.

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