कट्टरता के लिए बदनाम था एक बादशाह औरंगजेब।

हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए बहुत उपाय किया था औरंगजेब।कट्टरता के लिए बदनाम एक बादशाह औरंगजेब।

आदरणीय एवं सम्मानित मित्रों प्रणाम, नमस्कार।

   
Posted by:-  Lalsuprasad S. Rajbhar.

14/05/2019.

मुगल  मुसलमानों ने हिन्दू धर्म को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए बहुत अभियान चलाया था। कुछ बादशाह बहुत कट्टर. पंथी विचारधारा के थे। उनमें से एक बादशाह था औरंगजेब। औरंगजेब के किस्से बहुत सुनने को आते हैं। हाल में किसी ने आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की तुलना औरंगजेब से की थी। परंतु औरंगजेब एवं सम्मानिय मोदी जी मे जमीन आसमान का फासला है। औरंगजेब एक कट्टर वादी मुसलमान एवं लूटेरा था।

आज के दिन, लगभग 401 साल पहले, राजकुमारी मुमताज महल को एक बेटा हुआ। राजकुमार खुर्रम की खुशी का ठिकाना न था। खुर्रम पिछले कुछ दिनों से बहुत खुश था। हाल ही में पिता बादशाह जहांगीर ने बहादुरी दिखाने के कारण उसे शाहजहां का खिताब दिया था। हर कोई अटकलें लगा रहा था कि अफीमची जहांगीर ने तय कर लिया है कि उसके बाद शाहजहां ही भारत की गद्दी पर बैठेगा। इसी खुशी में खुर्रम ने नवजात बेटे को गले लगाते हुए कहा, यह तो सिंहासन का आभूषण है- औरंगजेब। बाद में उलेमाओं की सलाह पर बच्चे का नाम मुईउद्दीन मुहम्मद रखा गया। पर वह औरंगजेब के नाम से ही ज्यादा जाना जाता रहा। उसका जन्म गुजरात के पंचमहल इलाके के गांव दाहोद में, पिता शाहजहां के खेमे के एक तंबू में हुआ था। आने वाले समय में औरंगजेब का अधिकांश समय खेमों और तंबुओं में ही बीतने वाला था।

यह कोई अनहोनी बात न थी। उन दिनों भारत में शासन चलाने का बस एक ही तरीका था कि राजा और राजकुमार लगातार अपने इलाके  की गश्त करते रहें। जैसे ही राजा इलाके से दूर हुआ, वहां के लोकल जमींदार उपद्रव कर अपने आप को असंबद्ध, खुदमुख्तार घोषित करने की कोशिश करते थे। इसी सिलसिले में बादशाह जहांगीर अपने चहेते बेटे शाहजहां के साथ देश भर में दौरा करता रहता था। पर यह बात जहांगीर की चहेती रानी नूरजहां को बिल्कुल न सुहाई। सो उसने बादशाह के कान भरने शुरू किए। जब उसके हुक्म पर शाहजहां की काबुल पोस्टिंग की गई, तो शाहजहां को लगा कि यह नूरजहां द्वारा उसे शाही दरबार से दूर करने की साजिश है। वह बगावत कर बैठा। मगर उसकी फौजें शाही फौजों के सामने टिक न सकीं। अपने परिवार के साथ भागते हुए शाहजहां दक्कन के जंगलों में छिपता फिरा। अंत में, नूरजहां ने उसे इस शर्त पर छोड़ने की बात रखी कि उसके दोनों चहेते बेटे, दारा और औरंगजेब, बंधक के तौर पर शाही दरबार में रहेंगे। दारा उस समय 11 साल का था और औरंगजेब महज आठ साल का। दो साल तक दोनों बच्चे अपने मां-बाप से दूर, सौतेली दादी की कैद में रहे। अंत में 26 फरवरी, 1628 को शाहजहां के बादशाह बनने के बाद उन्हें अपनी मां से मिलने का सौभाग्य मिला। बादशाह ने औरंगजेब के लिए 500 रुपये का दैनिक भत्ता तय किया। अब पहली बार शहजादे की ठीक तरह से पढ़ाई-लिखाई शुरू हुई।

फिर आया 28 मई, 1633 का वह दिन, जब एक वाकये ने यह साबित कर दिया कि औरंगजेब बहुत बहादुर और विवेकशील है। औरंगजेब तब 15 साल का भी नहीं था। सुधाकर और सूरतसुंदर नाम के दो हाथी मल्ल युद्ध कर रहे थे। शाहजहां अपने बेटों के साथ इस लड़ाई को देखने पहुंचा। सभी अपने-अपने घोड़ों पर सवार थे। अचानक सुधाकर ने पलटकर बच्चों पर हमला बोल दिया। बाकी लोग तो डरकर भागे। लेकिन औरंगजेब ने अपने घोड़े को मोड़कर आक्रामक हाथी का सामना किया। हाथी ने सूंड़ के वार से औरंगजेब के घोड़े को गिरा दिया। फुर्ती से उठकर औरंगजेब अपनी तलवार निकाल हाथी के सामने डट गया। निडर बालक को देख सुधाकर हिचका। इसी बीच सुंदर ने उस पर हमला कर दिया। दोनों हाथी फिर से लड़ने लगे। औरंगजेब मौके का फायदा उठाकर पीछे हट गया। पिता ने आगे बढ़कर अपने वीर बेटे को गले लगा लिया। फिर प्यार से डांटा, ‘भागे क्यों नहीं?’ औरंगजेब ने जवाब दिया- मर भी जाता, तो कोई शर्म की बात नहीं थी। मौत तो हर किसी को आनी है। शर्म तो मेरे भाइयों को आनी चाहिए, जिस तरह वे भागे। खुश होकर औरंगजेब के जन्मदिन पर शाहजहां ने उसे इनामों से लाद दिया और उसे हाथी सुधाकर भी उपहार स्वरूप दिया गया।

औरंगजेब की शिक्षा देर से शुरू हुई। इसका भार कई उस्तादों ने उठाया। काफी समय तक कुरान  और हदीस की पढ़ाई चली। उसने फारसी-अरबी सीखी। हिन्दुस्तानी में वह माहिर था। चगताई तुर्की भाषा भी सीख ली, ताकि अपनी सेना के चगताई सिपाहियों से बात कर सके। यह सब तो सारे राजकुमार सीखते थे। यदि औरंगजेब भिन्न था, तो इसमें कि वह  शुरू से ही कुछ धार्मिक मिजाज का था। जहां बाकी राजकुमार मटरगश्ती करते, औरंगजेब कुरान  की प्रतियां तैयार करता। उसके द्वारा लिखी हुई दो प्रतिलिपियां मक्का और मदीना को दी गईं। तीसरी प्रतिलिपि निजामुद्दीन औलिया के परिवार को दी गई। कहा जाता है कि कुरान  की कई प्रतिलिपियां और उसके द्वारा बनाई हुई टोपियां बेची भी गईं।  

आने वाले समय में वह युद्ध व राजनीति में भी पारंगत हो गया। पर उसे दो बातें बहुत खलती थीं। एक तो अपने परिवार में फैली शराबखोरी और फिजूलखर्ची, और दूसरी, उसका यह विश्वास कि इस समस्या का कारण था, उसके परिवार का हिंदू धर्म के प्रति रुझान होना। जैसा इतिहासकार मुजफ्फर आलम ने अनेक बार दर्शाया है, मुगल साम्राज्य का कोई ‘इस्लामी’ स्वरूप नहीं था। उसके रीति-रिवाज, काम करने का तरीका, काम करने वाले लोग, विचारधारा, सब पर हिंदू रीति-रिवाजों, विचारों और लोगों का काफी असर थार्। हिंदू इन्हें अपने ही जैसा मानते थे और बादशाह की दिल खोलकर सेवा करते। इस बात से कई कट्टर उलेमा नाराज रहते। मुगल बादशाह को रह-रहकर खरी-खोटी सुनाते। आम तौर पर इस तरह के लोगों को कठमुल्ला कहकर नजरअंदाज कर दिया जाता था। उनकी बातों को महत्व तब मिलने लगा, जब 1660 के दशक के बाद भारत की आर्थिक हालत कमजोर होने लगी।

मुजफ्फर आलम तो यहां तक कहते हैं कि औरंगजेब ने अपने बडे़ भाई दारा की हत्या ही इसलिए की, क्योंकि दारा हिंदूवादी हो रहा था। पिता को भी उसने इसीलिए बंदी बनाया। गद्दी पर बैठने के कुछ ही समय बाद औरंगजेब ने उन सब लोगों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जो उसे गैर-इस्लामी नजर आते थे। 1670 के दशक के बाद तो मानो औरंगजेब हर गैर-इस्लामी को सजा देने की ठान  चुका था। हिंदुओं को तो उसने तंग किया ही, उनके मंदिर तोड़े, जजिया लगाया, साथ ही साथ सिख, शिया, बोहरा समुदायों को भी खूब सजा दी। जाहिर है, ये सभी औरंगजेब को एक दुष्ट राजा के तौर पर याद करने लगे, न कि एक बहादुर और विवेकशील राजा के रूप में, जिसने देश को एकजुट रखने के लिए जिंदगी भर प्रयास किए थे। औरंगजेब हिन्दू धर्म का बहुत विनाश किया था।

धन्यवाद।

ऊँ नमः शिवाय।

जय सुहेलदेव राजभर।

ललसूप्रसाद यस. राजभर।

14/05/2019.

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