महाराजा लाखन भर।

हिन्दूत्ववादी वीर शिरोमणि महाराजा लाखन राजभर।


आदरणीय एवं सम्मानित मित्रों प्रणाम, नमस्कार।


Posted by. : Lalsuprasad S. Rajbhar

08/02/2021.

 

मित्रों इतिहास साक्षी है कि शूद्र कभी राजा नहीं हुए।फिर भी ये सुअर पालने वाले पासी राजा कैसे हो गए ?  ये बहुत बड़ा प्रश्न है? ये पासी समाज के लोग हमारे महापुरूषों को  अपना बताकर कब्जा करना चाहते हैं।महाराजा लाखन पासी नहीं भर जाति के थे। पासी समुदाय के लोग जबरदस्ती हमारे भर / राजभर समाज के महापुरुषों को अपना बता रहे हैं। भर / राजभर जाति एक बहादुर लड़ाकू राजपूत जाति है। जबकि पासी जाति को उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है। पासी जाति सुअर पालन का कार्य करते थे।फिर पासी समुदाय के लोग राजा कैसे हो गए?? कुछ राजनीतिक दल हमारे भर/ राजभर समाज के साथ गद्दारी करके पासी समुदाय का साथ दे रहे हैं। 10 वी सदी भर / राजभर राजाओं के लिए बहुत अशुभ शाबित हुई।  इसी  10 वी शताब्दी के अन्तिम वर्षों में  लखनऊ के सबसे शक्तिशाली राजभर महाराजा लाखन  वीरगति को प्राप्त हुए। लखनऊ का नाम पहले लखनपुर था। लखनऊ को महाराजा  लाखन राजभर के नाम से बसाया गया था। आज जिस टीले पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की भव्य इमारत खड़ी है। उसी टीले पर महाराजा लाखन राजभर का किला हुआ करता था। लाखन राजभर  का राज्य 10 वीं शताब्दी में था। लखनऊ का टीला बताता है कि यह किला डेढ़ किलोमीटर लम्बा तथा उतना ही चौड़ा था। यह किला धरातल से 20 मीटर ऊंचा था। उक्त किले के मुख्य भाग पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज स्थापित है। यही स्थान लाखन राजभर 
किला के नाम से जाना जाता है। टीले पर ही बड़ा इमाम बाडा़ मेडिकल कॉलेज, मच्छी भवन टीलें वाली मस्जिद तथा आस पास का क्षेत्र है। राजा लाखन राजभर  की पत्नी का नाम लखनावती था। संभवतः कुछ दिनों तक इसीलिए लखनऊ का नाम भी लखनावती चलता था। राजा लाखन ने लखनावती वाटिका का निर्माण कराया था। जिसके पूर्वी किनारे पर नाग मंदिर भी बनवाया था। लाखन राजा भगवान शिव नाग  उपासक थे। किले के उत्तरी भाग में लाखन कुंड था। उस कुंड के जल का प्रयोग राज परिवार के लोग करते थे। सोलहवीं शताब्दी में लखनऊ पर राज्य कर रहे नबाबों  ने इस कुंड में रंग बिरंगी मछलियों को पाला था इसी कारण उस कुंड का नाम मच्छी कुंड पड़ गया। नबाबों ने कालांतर में इसी स्थान पर 26 द्वार के एक दिव्य भवन का निर्माण कराया था, जिसके प्रत्येक द्वार पर मछलियों का एक जोड़ा का भी निर्माण कराया गया था। इसी कारण भवन का नाम मच्छी भवन रखा गया था। इतिहास के पन्नों में अंकित है कि सैयद सालार मसूद गाजी ने जब लखनऊ पर हमला किया था तो उसके प्रमुख सेनापति सैयद हातिम और सैयद खातिम ने राजा लाखन  राजभर के राज्य की सीमा पर स्थित गढ़ी जिंनजौर में अपना पड़ाव डाला था। यहीं से गुप्तचरों के माध्यम से किले की सारी गतिविधियों की जानकारी किया था और तय किया था कि राजा लाखन राजभर और कसमंडी के राजा कंस दोनों मित्र थे।  दोनों पर एक ही दिन हमला किया जाय ताकि वह एक दूसरे की मदद न कर सके। उस समय की गाजी मियां और भर /.राजभर की लड़ाई राजपाट की थी। जैसा औरंगजेब के भाईयों के प्रति था। परिणाम स्वरूप दोनों राजाओं पर सैय्यद सालार मसूद गाजी की फौज ने ठीक होली के दिन हमला किया,हमला उस समय शाम को किया, जब लाखन राजभर दुर्ग में आराम कर रहे थे। होली के पर्व को मना कर उनके सिपाही भी आराम कर रहे थे।किले पर अचानक हुए आक्रमण का समाचार सुनकर राजा घोड़े पर सवार होकर फौज के साथ रण भुमि में जा डटे। यह युद्ध बड़ा भयंकर था इसमें भीषण रक्तपात हुआ। राजा लाखन राजभर के सैनिक गाजी की सेना पर भूखे शेरों की भांति टूट पड़े। मसूद की सेना में सभी घुड़सवार थे, उन्होंने राजा लाखन राजभर  को चारो ओर से घेर लिया फिर भी राजा लाखन राजभर मोर्चा संभाले रहे उन पर तलवार के हमले किये जा रहे थे। यह हमला बड़ा ही भयानक था,धोखे से गाजी के एक सैनिक ने पीछे से राजा की गर्दन पर तलवार मार दिया। राजा लाखन राजभर  का सर कट कर लुढ़कता हुआ जा गिरा। इस भीषण लड़ाई के बाद उस जगह का नाम सरकटा नाला पड़ा। चौपटिया नामक स्थान पर स्थित अकबरी दरवाजे के पास ही युद्ध हुआ था। जिस समय राजा का धड़ सर से अलग हुआ था उस समय सर कटने पर भी राजा का धड़ दोनों हाथों में तलवार लिए घोड़े पर सवार भयानक युद्ध कर रहे थे, गाजी के कई सैनिक मारे गए थे। बिना सर के धड़ की करामात देख गाजी के सैनिक भी घबरा गए थे।ऐसे बहादुर थे राजा लाखन राजभर। 16 अक्टूबर को महाराजा लाखन राजभर की जयंती मनाई जाती है।  कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महाराजा लाखन राजभर जी का जन्म 10 वी सदी में 1002  ई. अक्टूबर माह में हुआ था। परन्तु यह भी सही  है या नहीं निश्चित नहीं है।

जय महाराजा लाखन राजभर।

Lalsuprasad  S. Rajbhar

08 /02/2021.🌹🌹💐💐🌸🌸🌿🌿🌺🌺🌷🌷🙏🙏

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